Mansarovar - Part 7 (मानसरोवर - भाग 7)

Fiction & Literature, Literary
Cover of the book Mansarovar - Part 7 (मानसरोवर - भाग 7) by Premchand, Sai ePublications
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Premchand ISBN: 9781329908437
Publisher: Sai ePublications Publication: December 19, 2016
Imprint: Sai ePublications Language: Hindi
Author: Premchand
ISBN: 9781329908437
Publisher: Sai ePublications
Publication: December 19, 2016
Imprint: Sai ePublications
Language: Hindi

मानसरोवर - भाग 7

जेल
पत्नी से पति
शराब की दुकान
जुलूस
मैकू
समर-यात्रा
शान्ति
बैंक का दिवाला
आत्माराम
दुर्गा का मन्दिर
बड़े घर की बेटी
पंच-परमेश्वर
शंखनाद
जिहाद
फातिहा
वैर का अंत
दो भाई
महातीर्थ
विस्मृति
प्रारब्ध
सुहाग की साड़ी
लोकमत का सम्मान
नाग-पूजा

----------------------------------

मृदुला मैजिस्ट्रेट के इजलास से ज़नाने जेल में वापस आयी, तो उसका मुख प्रसन्न था। बरी हो जाने की गुलाबी आशा उसके कपोलों पर चमक रही थी। उसे देखते ही राजनैतिक कैदियों के एक गिरोह ने घेर लिया और पूछने लगीं, कितने दिन की हुई ? मृदुला ने विजय-गर्व से कहा-मैंने तो साफ-साफ कह दिया, मैंने धरना नहीं दिया। यों आप जबर्दस्त हैं, जो फैसला चाहें, करें। न मैंने किसी को रोका, न पकड़ा, न धक्का दिया, न किसी से आरजू-मिन्नत ही की। कोई ग्राहक मेरे सामने आया ही नहीं। हाँ, मैं दूकान पर खड़ी ज़रूर थी। वहाँ कई वालंटियर गिरफ्तार हो गये थे। जनता जमा हो गयी थी। मैं भी खड़ी हो गयी। बस, थानेदार ने आ कर मुझे पकड़ लिया। क्षमादेवी कुछ कानून जानती थीं। बोलीं-मैजिस्ट्रेट पुलिस के बयान पर फैसला करेगा। मैं ऐसे कितने ही मुकदमे देख चुकी। मृदुला ने प्रतिवाद किया-पुलिसवालों को मैंने ऐसा रगड़ा कि वह भी याद करेंगे। मैं मुकदमे की कार्रवाई में भाग न लेना चाहती थी; लेकिन जब मैंने उनके गवाहों को सरासर झूठ बोलते देखा, तो मुझसे ज़ब्त न हो सका। मैंने उनसे जिरह करनी शुरू की। मैंने भी इतने दिनों घास नहीं खोदी है। थोड़ा-सा कानून जानती हूँ। पुलिस ने समझा होगा, यह कुछ बोलेगी तो है नहीं, हम जो बयान चाहेंगे, देंगे। जब मैंने जिरह शुरू की, तो सब बगलें झाँकने लगे। मैंने तीनों गवाहों को झूठा साबित कर दिया। उस समय जाने कैसे मुझे चोट सूझती गयी। मैजिस्ट्रेट ने थानेदार को दो-तीन बार फटकार भी बतायी। वह मेरे प्रश्नों का ऊल-जलूल जवाब देता था, तो मैजिस्ट्रेट बोल उठता था-वह जो कुछ पूछती हैं, उसका जवाब दो, फजूल की बातें क्यों करते हो। तब मियाँ जी का मुँह जरा-सा निकल आता था। मैंने सबों का मुँह बंद कर दिया। अभी साहब ने फैसला तो नहीं सुनाया, लेकिन मुझे विश्वास है, बरी हो जाऊँगी । मैं जेल से नहीं डरती; लेकिन बेवकूफ भी नहीं बनना चाहती । वहाँ हमारे मंत्री जी भी थे और बहुत-सी बहनें थीं। सब यही कहती थीं, तुम छूट जाओगी।

View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart

मानसरोवर - भाग 7

जेल
पत्नी से पति
शराब की दुकान
जुलूस
मैकू
समर-यात्रा
शान्ति
बैंक का दिवाला
आत्माराम
दुर्गा का मन्दिर
बड़े घर की बेटी
पंच-परमेश्वर
शंखनाद
जिहाद
फातिहा
वैर का अंत
दो भाई
महातीर्थ
विस्मृति
प्रारब्ध
सुहाग की साड़ी
लोकमत का सम्मान
नाग-पूजा

----------------------------------

मृदुला मैजिस्ट्रेट के इजलास से ज़नाने जेल में वापस आयी, तो उसका मुख प्रसन्न था। बरी हो जाने की गुलाबी आशा उसके कपोलों पर चमक रही थी। उसे देखते ही राजनैतिक कैदियों के एक गिरोह ने घेर लिया और पूछने लगीं, कितने दिन की हुई ? मृदुला ने विजय-गर्व से कहा-मैंने तो साफ-साफ कह दिया, मैंने धरना नहीं दिया। यों आप जबर्दस्त हैं, जो फैसला चाहें, करें। न मैंने किसी को रोका, न पकड़ा, न धक्का दिया, न किसी से आरजू-मिन्नत ही की। कोई ग्राहक मेरे सामने आया ही नहीं। हाँ, मैं दूकान पर खड़ी ज़रूर थी। वहाँ कई वालंटियर गिरफ्तार हो गये थे। जनता जमा हो गयी थी। मैं भी खड़ी हो गयी। बस, थानेदार ने आ कर मुझे पकड़ लिया। क्षमादेवी कुछ कानून जानती थीं। बोलीं-मैजिस्ट्रेट पुलिस के बयान पर फैसला करेगा। मैं ऐसे कितने ही मुकदमे देख चुकी। मृदुला ने प्रतिवाद किया-पुलिसवालों को मैंने ऐसा रगड़ा कि वह भी याद करेंगे। मैं मुकदमे की कार्रवाई में भाग न लेना चाहती थी; लेकिन जब मैंने उनके गवाहों को सरासर झूठ बोलते देखा, तो मुझसे ज़ब्त न हो सका। मैंने उनसे जिरह करनी शुरू की। मैंने भी इतने दिनों घास नहीं खोदी है। थोड़ा-सा कानून जानती हूँ। पुलिस ने समझा होगा, यह कुछ बोलेगी तो है नहीं, हम जो बयान चाहेंगे, देंगे। जब मैंने जिरह शुरू की, तो सब बगलें झाँकने लगे। मैंने तीनों गवाहों को झूठा साबित कर दिया। उस समय जाने कैसे मुझे चोट सूझती गयी। मैजिस्ट्रेट ने थानेदार को दो-तीन बार फटकार भी बतायी। वह मेरे प्रश्नों का ऊल-जलूल जवाब देता था, तो मैजिस्ट्रेट बोल उठता था-वह जो कुछ पूछती हैं, उसका जवाब दो, फजूल की बातें क्यों करते हो। तब मियाँ जी का मुँह जरा-सा निकल आता था। मैंने सबों का मुँह बंद कर दिया। अभी साहब ने फैसला तो नहीं सुनाया, लेकिन मुझे विश्वास है, बरी हो जाऊँगी । मैं जेल से नहीं डरती; लेकिन बेवकूफ भी नहीं बनना चाहती । वहाँ हमारे मंत्री जी भी थे और बहुत-सी बहनें थीं। सब यही कहती थीं, तुम छूट जाओगी।

More books from Sai ePublications

Cover of the book Bhikarin Aur Vidaa by Premchand
Cover of the book Holi Ka Uphar (Hindi) by Premchand
Cover of the book The Horse Stealers and Other Stories by Premchand
Cover of the book Ghaswali Aur Dil ki Rani (Hindi) by Premchand
Cover of the book Mansarovar - Part 3 (Hindi) by Premchand
Cover of the book Duniya Ka Sabse Anmol Ratan (Hindi) by Premchand
Cover of the book Hanuman Chalisa and Hanuman Aarti by Premchand
Cover of the book The Dreadnought of the Air by Premchand
Cover of the book Dehati Samaj (Hindi) by Premchand
Cover of the book Rabindranath Tagore's Selected Stories by Premchand
Cover of the book Durgadas (Hindi) by Premchand
Cover of the book Gaban by Premchand
Cover of the book The Princess of the School by Premchand
Cover of the book Modern India by Premchand
Cover of the book Rahsya (Hindi) by Premchand
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy